➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant #gita <br /><br />वीडियो जानकारी: 16.03.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग: <br />न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा। <br />इति मां योSभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।। <br /><br />कर्माणि (सब कर्म) मां (मुझे) न लिम्पन्ति (लिप्त नहीं करते) कर्मफले (कर्म के फल में) न मे स्पृहा (मेरी कोई आकांक्षा नहीं है) इति (ऐसा) यः (जो व्यक्ति) माम् (मुझे) अभिजानाति (जानता है) सः (वह) कर्मभिः (कर्मों के द्वारा) न बध्यते (बद्ध नहीं होता) ॥ <br /><br />जितने भी कर्म हैं मुझे लिप्त नहीं करते। कर्मफल की मेरी कोई इच्छा नहीं है, जो व्यक्ति मुझे ऐसा जानता है, वह भी कर्मों में बद्ध नहीं होता। <br /> <br />नादान एक कहने लगा <br />तन लहूलुहान किसके लिए <br />आंख मार सीटी बजाई <br />सब रक्तबिंदु मुस्का दिए<br /><br />~ बचने का एक ही तरीका है , जो कील होती है बीच में, जा कर उससे लग जाओ <br />~ एक चक्की से निकलोगे, तो किसी दूसरी चक्की में फस जाओगे <br />~ आप अगर पिस रहे हो, तो जिम्मेदारी और चुनाव आपका है <br />~ जो कील से जा कर लग गया, वो जीत ही गया है <br />~ किली से लगे रहने को निष्काम कर्म कहते है <br />~ शरीर जितना आपकी चेतना पर भारी पड़ेगा , उतना आप केंद्र से दूर भागोगे <br />~ अगर चाहते हो, की केंद्र से बिलकुल ही न छिटको, तो केंद्र पर ही आ जाओ <br />~ मैंने केंद्र को पकड़ लिया है, अब क्या होने जा रहा है? मुझे जानने से कोई मतलब नही<br />~ कामना में डूबना लिप्तता का प्रमाण नहीं है ,और काम में डूबना निर्लिप्तता का भी प्रमाण नही है I<br />~ लिप्तता का प्रमाण कर्मफल की सघनता नहीं होती , लिप्तता का प्रमाण कर्मफल की आशा होती है I<br />~ मज़ा खेलने में है। क्यों पैदा हुए हैं हम? खेलने के लिए। सही खेल पकड़ो और खेल जाओ। सजाने और बचाने के लिए नहीं पैदा हुए हो।<br />~ नष्ट तो होना ही है। वो करो जो करना है।<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~